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India Research Center

The India Research Center, based in Mumbai, serves as a hub for Harvard Chan School’s research projects, educational programs, and knowledge translation and communication work across India.

Location

Dextrus, 6th floor,
Peninsula Towers,
Peninsula Corporate Park,
Lower Parel, Mumbai 400013
India

मानसिक स्वास्थ्य

  1. सजगता का अभ्यास करें

सजगता वह स्थिति है जिसमें हम अपने मस्तिष्क में और हमारे आस-पास चल रही चीजों के बारे में जागरुक रहते हैं लेकिन इसको ले कर कोई प्रतिक्रिया नहीं करते। हर पल को हम पूर्णता के साथ और उसका पूरा उपयोग करते हुए जीते हैं। इसका अभ्यास करने के लिए अपने पूरे ध्यान को ‘इस समय’ या ‘वर्तमान’ पर लगाएं। आपके जेहन से गुजर रहे सभी विचारों को ले कर जागरुक रहें और इन पर कोई फैसला कायम नहीं करें। साक्ष्य बताते हैं कि अगर हम अपने दैनंदिन जीवन में इस सजगता का अभ्यास करें तो भावनात्मक उथल-पुथल लानी वाली घटनाओं से निपट पाने में, अपनी भावनात्मक स्थिति पर नियंत्रण रखने में और चिंता व तनाव संबंधी लक्षणों को कम करने में काफी अधिक सक्षम हो पाते हैं।

  1. प्रणायाम या सांस संबंधी आसन सीखें

जब कभी तनाव में हों, लंबी और गहरी सांस लें! “सजग श्वसन प्रक्रिया” को आसानी से सीखा जा सकता है। सामान्य गति से सांस लें और अपनी हर आती-जाती सांस के साथ शरीर में होने वाली संवेदना को महसूस करें। प्रणायाम या सजग श्वसन प्रक्रिया पर शोध कर हम अपनी भावनाओं और तनाव पर काबू रख सकते हैं। सजग श्वसन का एक अहम तरीका विकेंद्रीकरण भी है। इसमें हम अपने मस्तिष्क में चल रहे नकारात्मक विचारों को महसूस करना सीखते हैं और उस दौरान हम उसको ले कर कोई निष्कर्ष नहीं निकालते। इस तरह हम नकारात्मक भावों से खुद अपने आप को अलग रख पाने में कामयाब हो पाते हैं।

  1. ध्यान लगाएं

ध्यान बहुत आसान प्रक्रिया है और इसके लिए सिर्फ कुछ मिनट ही चाहिए होते हैं!  इससे शांति मिलती है, नकारात्मक भावनाएं कम होती हैं, तनाव से निपटने की शक्ति मिलती है और सहनशक्ति बढ़ती है। सजग ध्यान में आप अपने शरीर, सांस और विचारों को ले कर सजग रहते हैं, लेकिन कोई नकारात्मक भाव आए तो बिना उससे किसी निष्कर्ष पर पहुंचे ही आगे बढ़ जाते हैं और उसका प्रभाव स्वयं पर नहीं होने देते। ध्यान में आपकी सहायता के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन असंख्य सामग्री उपलब्ध हैं। इस खंड के अंत में भी ऐसे कई स्रोत उपलब्ध करवाए गए हैं।

  1. समाचार के लिए सिर्फ भरोसेमंद स्रोतों का ही उपयोग करें

कोविड​​-19 के बारे में सटीक और समय पर जानकारी प्राप्त करना बहुत जरूरी है। लेकिन इसके लिए सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (सीडीसी), विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और स्वास्थ्य मंत्रालय जैसे विश्वस्त सूत्रों की ओर से जारी सलाह पर ही भरोसा करना चाहिए। इस वायरस के बारे में बहुत अधिक खबरें देखने से भय और चिंता की भावनाएं बढ़ सकती हैं। खास तौर पर नवीनतम वैज्ञानिक शोध आदि के बारे में आ रही जानकारी आपके दिन-प्रतिदिन के प्रयोग के लिए प्रासंगिक नहीं होती हैं। समाचार पढ़ने और देखने या सोशल मीडिया पर समय व्यतीत करने की बजाय पढ़ने, संगीत सुनने, दूसरों से बात करने या किसी सकारात्मक गतिविधि में समय लगाएं।

  1. सोशल मीडिया का सजग उपयोग

हम में से बहुत से लोग सोशल मीडिया पर सूचना साझा करने को ले कर चिंतित रहते हैं, लेकिन झूठी और भ्रामक सूचना हमारे जीवन पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है। सोशल मीडिया पर कुछ भी पोस्ट करते समय दो बार सोचें। खुद से पूछें- क्या वह सामग्री सच्ची, लोगों की मदद करने वाली, प्रेरणा देने वाली, आवश्यक या सहृदयतापूर्ण है? कोविड-19 के दौरान सोशल मीडिया के अधिक सजग उपयोग के संबंध में और जानकारी के लिए यहां क्लिक करें

  1. दूसरों के लिए दयालु और उदार रहें

मौजूदा परिस्थिति में अक्सर ऐसा होगा कि लोग अपने और अपने परिवार के लिए ही सोचें। हम खाने-पीने के समान और दवाओं की कमी की आशंका में इन्हें बड़े पैमाने पर जमा करने लगते हैं जिसकी वजह से इनकी कमी हो जाती है। ऐसे मौकों पर खाद्य और आवश्यक सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करना जरूरी है, लेकिन ऐसे में दूसरे लोगों का भी ध्यान रखें और यह नहीं भूलें कि उन्हें भी इनकी जरूरत हो सकती है। ऐसी उदारता और दया का भाव हमारे अंदर सामुदायिक भाव को जागृत कर सकता है और इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि सभी को इन चीजों की समान उपलब्धता हो।

  1. किसी को कलंकित ना करें और सभी के लिए सहानुभूति रखें

वायरस किसी से भेद-भाव नहीं करता तो फिर हम ऐसा क्यों करें! कोविड-19 के प्रसार के साथ लोगों में जो भय और चिंता का माहौल बना है, उससे कुछ लोगों, स्थानों या समुदायों के बारे में दुर्भावना पैदा हो सकती है। इससे प्रभावित व्यक्तियों के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर कुपरिणाम हो सकते हैं, अविश्वास का माहौल पैदा हो सकता है और साथ ही इससे संबंधित लोगों को ऐसे किसी मामले के बारे में बताने या जांच करवाने में भय हो सकता है। कलंक के इस भाव से हम निपट सकते हैं, इसके लिए हमें यह समझना होगा कि वायरस सामाजिक वर्ग, नस्ल, समुदाय या राष्ट्रीयता को नहीं देखता। ऐसे मामलों में हमें दूसरे व्यक्ति या समुदाय की जगह खुद को रख कर देखना चाहिए और उन लोगों या समुदायों के प्रति उदारता दिखानी चाहिए। इनके बारे में किसी तरह के भेद-भाव या कट्टरता पैदा करने वाली सूचना को प्रसारित करने से रोकना चाहिए।

कुछ उपयोगी स्रोत